माँसाहार पुण्य है या पाप Dharmik Kahaniya

Religious Story in Hindi on Philanthropy. Dharmik Kahani धार्मिक कहानी माँसाहार पुण्य है? या पाप?अथर्व वेद में कहा गया एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था









 माँसाहार  पुण्य है या पाप dharmik Kahaniya 


short Dharmik story in Hindi.

Religious Story in Hindi on Philanthropy. Dharmik Kahani धार्मिक कहानी . एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था, हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता था. माँस खाना पुण्य  है? या पाप?




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Dharmik  Kahaniya  in Hindi 


 माँस खाना पुण्य  है? या पाप ? धार्मिक कहानियां Dharmik Kahaniya


धर्म के मुख्य धर्म ग्रंथ उपनिषदों का सार भागवत गीता में पशु हत्या पाप मानी  गई है
 और मांस खाने के सम्बंध में स्पष्ट  रूप मना किया गया है.

 इतना ही नहीं पशुओं के मांस के सम्बंध में परमात्मा की सभी रचनाओं को अपनी आत्मा से प्यार है

  अर्थात  मारना नहीं चाहिए, जैसे हम जानते हैं कि दूसरों का भी वही आत्मा है। जो हमारी है।

  अथर्व वेद में कहा गया है, मानव के लिए, चावल दाल फल सब्जियां है। 

 माता ई-रिक्शा में ही समाज की उन्नति है चार पैर वाले पशुओं की रक्षा करनी चाहिए गीता में मांस खाने या नहीं खाने की बजाय में विभाजित किया गया है

 और विचार बनते हैं जो मनुष्य और मांस  जैसी चीजें तामसिक भोजन कहलाती है

 इस तरह का भोजन करने वाले लोग अक्सर रोगी होते है  सात्विक आहार आयु को बढ़ाने और तदुरूस्त  होने  वाला और बल बुद्धि और स्वास्थ्य को वृद्धि प्रदान करने वाला होता है.

 जी आहार पाप माना  जाता है और यह  गरुड़ पुराण कथा मिलता है। 


एक समय की बात है। एक दिन श्री  कृष्ण यमुना तट  पर बासुरी बजा रहे थे। 

उसी  समय एक घटना घट गई। 

 एक दौड़ता हुआ वहाँ आया और उनके पीछे जाकर छिप गया हिरन  बहुत डरा हुआ था तब श्रीकृष्ण ने उसके सिर को सलाते हुए पूछा क्या बात है. उसी समय एक शिकारी आ गया ये मेरा शिकार है। कृप्या  आप मुझे प्रदान करें 

तभी श्री कृष्ण ने कहा हर जीवित प्राणी संसार में  है। 
 सबसे  पहले खुद का अधिकार होता है, न की किसी और का  ये बात सुन कर  शिकारी को क्रोध आ गया. शिकारी ने कहा.

 तुम मुझे ज्ञान का पाठ मत पढ़ाओ , मैं इतना जनता हूँ। ये मेरे शिकार  इस पर मेरा अधिकार मैं इसे मार कर खाना चाहता , 

अर्थात मेरा भोजन है।  भगवान कृष्ण  किसी भी जीव को मारकर खाना पाप है क्या तुम पाप  के भागी दार  बनना चाहते हो.

 मांसाहार पुण्य है या पाप. यह तुम नहीं जानते,  शिकारी बोला मैं आपके जैसा ज्ञानी नहीं हूँ  मैं क्या जानू मांसाहार मैं तो बस इतना जानता हूँ,

 कि अगर  मैं शिकार नहीं किया तो मुझे खाना नहीं मिलेगा, मैं भी तो इस जीव का जीवन मुक्त कर रहा हूँ। 

और मैं भी तो पुण्य का कार्य कर रहा हूँ। फिर आप मुझे  ये पुण्य का कार्य करने  मना कर रहे हैं,

 जहाँ तक मैंने सुनाएँ, राजा , महाराजाओं ने भी शिकार  किया करते थे। शास्त्र में ये बताया गया. 

मेरे हिसाब से तो पुण्य , फिर मुझ गरीब को शिकार करना सही नहीं है.
क्या निर्धन ब्यक्ति के लिए  पाप है. 

 मुझे आप ही बताइए मांस खाना पाप है या पुण्य  शिकारी के मुख्य ऐसी बातें सुनकर 

भगवान श्री कृष्ण - इसी  बुद्धि भर्स्ट हो गई मांस खाने के कारण सोचने समझने शक्ति नहीं  है। 


भगवान श्री कृष्ण - ने कहाँ ध्यान सुनो तुम्हे मैं एक कहानी सुनाता हूँ ? फिर आप ही बताना मांस खाना पाप है या पुण्य 


शिकारी - सोचने लगा आखिर मैं  इस कहानी को सुन ही लेता हूँ। मेरा मनोरंजन भी हो जाये गा और मुझे मांस भी मिल जाएगा ?




भगवान श्री कृष्ण- एक राजा के राज्य   एक बार अकाल  की वजह से उत्पादन कम हो गया. प्रजा में भूख मर्री छागई

  और राजा को चिंता होने  लगी की समस्या का निदान करने के लिए पांचो तथा मंत्रियो को सभा भुलवाई  नहीं  राज्य का धन कोस खाली  हो चुकी है। ऐसी  में संगृहीत धन  खत्म हो जाएगा।

 सलहकारो से   धन रात्रि के बारे में  सभी से पूछा जाने लगा अर्थात प्रस्ताव रखा गया  आदि धन  को उगाने के लिए श्रम करना पड़ता है। 

और  समय भी काफी लगता है ऐसे में तो कुछ भी सस्ता नहीं हो सकता पर आप सभी के विचार में हमें क्या करना चाहिए , ताकि कम  और सस्ता उपाय बताये जो जल्दी हमें खाने के लिए मिल जाये ? सबसे सस्ती वस्तु क्या है। 

फिर सभी मंत्रियों गण सलाहकार सोचने लगे। खाद्य पदार्थ उगने में तो काफी समय लग सकती है। 

तभी एक मंत्री ने   खड़े हो कर कहा , महाराज मेरे हिसाब में सबसे सस्ता पदार्थ मांस है  मेरे मुताबिक सबसे सस्ता मिलता है

 और इसमें धन की भी हानि नहीं होती है और बड़े आराम से हमें मांस भी मिल जाएगा सभी मंत्रियों ने हाँ में हाँ मिला दिया पर  -प्रधानमंत्री ने चुप था 

राजा ने कहा प्रधान मंत्री तुम चुप क्यों हो तुम भी कहो , 
प्रधानमंत्री ने  कहा कि मै  नहीं मानता मांस सबसे सस्ता हो सकता है। पर  में अपने विचार  कल से आपके  सामने  रखूंगा।

आज मुझे छमा करे। प्रधानमंत्री कुटील और 
 बुद्धिमान था ( बीरबल की तरह ) जो मंत्री  प्रस्ताव रखने वाली सलाहकार मंत्री  के  घर पंहुचा साम को प्रधान मंत्री  यह प्रस्ताव रखा था.

 जिस सलहाकार मांस का प्रस्ताव दिया था  प्रधानमंत्री को अपने घर आया देखा तो वह घबरा गया. सलहाकार  जिसकी डर  से कांप गया प्रधानमंत्री ने  कहा -  महाराज बीमार हो गए उनकी हालत बहुत ही खराब हो गई है.

  आज साम से  राज बैद ने कहा है इसकी प्राण को बचा पाना मुश्किल है राजबैद  की आज्ञा से तुम्हारे पास आया हूँ।  

सलहाकार -राजबैद ने किया संदेस भेजा मंत्री जी - प्रधानमंत्री ने कहा महाराज के जान को खतरा है। अर्थात क्या समस्या होगी है। 

प्रधान मंत्री -  किसी सप्रिय आदमी के एक तोला मांस चाहिए। तभी महाराज बच पाएंगे खास कर  तुम्हारे   इसके आलावा आप मुंहमांगी रकम ले सकते हो।  चाहो तो आप प्रधान मंत्री की पद भी ले सकते हो। 


 मैं आपको दो  लाख स्वर्ण मुद्राएँ भी दे सकता हूँ इसके अलावा एक बड़ी जागीर भी आपके नाम कर दी जाएगी।

  सलहाकार  पैर पकड़ने और गिराते हुए बोला यह बात किसी और को पता ना चले  आखिर मैं ही नहीं रहूंगा तो पद और स्वर्ण मुद्राएँ किस काम की.

 अर्थात मुझे छमा करें पर मांस नहीं दे सकता  प्रधानमंत्री से याचना किया  चाहे तो मेरा सब कुछ ले-ले आप दो के जगह पर चार लाख  स्वर्ण मुद्राएँ मेरे से ले जाओ लेकिन मुझे जाने दे ?


 प्रधानमंत्री वहाँ से  स्वर्ण मुद्राएँ कर  चला गया  राजा की सभी सलाहकारों ने  सब ने अपने बचाव के लिए प्रधानमंत्री को एक लाख  कोई  तीन लाख  स्वर्ण मुद्राएँ दिए.

     इस प्रकार प्रधानमंत्री ने इतनी  धन एक ही रात में एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ जमा कर लिया और सुबह होने से पहले ही अपने महल में पहुंच गया अगली सुबह राज सभा में सभी समय से पहुंच गए

कोई भी  किसी को रात की बात नहीं बता रहा था थोड़ी देर बाद राज्यसभा में अपने चिर परिचित अंदाज में राजा आया और  कहीं से भी अस्वस्थ नहीं लग रहा था।  राजा को  तो कुछ हुआ ही नहीं  जैसे लग रहा है। सभी मंत्रीगण सोचने लगे। 

वास्तव में  प्रधानमंत्री ने उसे झूठ बोला था सभी के  के मन में यह विचार चल रहा था तभी प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष एक करोड़ स्वर्ण मुद्रा ला कर रख दिया राजा ने 

 कहाँ से लाये हो इतनी  स्वर्ण मुद्राएँ - प्रधानमंत्री ने जवाब दिया महाराज अपनी जान बचाने के लिए मांस  तो नहीं मिला  यह मुद्रा है. अब आप ही बताइए कि मांस  सस्ता  है या महंगा राजा को बात समझ आ गई.

 उन्होंने प्रजाति अतिरिक्त परिश्रम करने का निवेदन किया और राजकीय अनाज भंडार में से निकालकर राजनीति का स्वर्ण मुद्राएँ किसी कार्य के लिए और श्रमिकों के कल्याण के लिए

 कृषि गई फल सब्जिया खेतो में हरियाली मौसम अनुकूल हो गया  नजाकत कल्याण विभाग इस तरह राज्य का खाद्य संकट का निदान हुआ। भगवान की वाणी सुन कर शिकारी परिपूर्ण हो गया और 

 शिकारी ने भगवान के आगे हाथ जोड़ चला गया उसने कसम खाई  कभी शिकार न करने की शिकारी को समझ में आगया। महानता तो तभी है , जीवन लेने में बलकि जीवन देने में 


 Dharmik-Kahaniya

मित्रो जीवन का हमें भी जान प्यारी  है उसी तरह सभी जिव  करना चाहते हैं परंतु आप के ऊपर निर्भर है।  आप क्या खाना पसंद करेंगे। 

विज्ञान भी इस बात को प्रमाणित कर चूका है   कि हमारे शरीर के लिए मांसाहार की अपेक्षा शाकाहार भोजन अधिक  फायदेमंद है. 



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